Jharkhand: फाइव स्टार हाॅटल-रिसाॅर्ट राजनीति

झारखंड में चुनाव अयोग से गर्वनर के पास पहुंचा लिफाफा, लगता है सियासी हो गया है! कहीं न कहीं गर्वनर की साख़ पर भी अब सवाल उठने लगे हैं। जबकि यह संवैधानिक पद है और राजनीति से अलग होना चाहिए। परन्तु पिछली कुछ घटनाओं ने साफ कर दिया है कि यह केन्द्र में सत्तारूढ़ दल के इशारे पर ही कार्य करता है। इसमें ताजा उदाहरण है महाराष्ट्र का। दूसरा, फाइव स्टार हाॅटल-रिसाॅर्ट पाॅलिटिक्स अब फैशन में आ गई है! यहां भी ताजा उदाहरण महाराष्ट्र का ही है! देशवासियों ने देखा कैसे यहां के विधायक रातों-रात सूरत और उसके बाद गुहाटी पहंच गए! जब वापिस आए तो सरकार पलट गई! ऐसा न हो सके के लिए ही झारखंड के विधायकों को मुख्यमंत्री द्वारा छत्तीसगढ़ भेज दिया गया।

विधायकों की खरीद-फरोख़्त को देश की जनता भी देख रही है! कोई बचने के लिए भाग रहा है तो कोई इन्हें पकड़ना चाहता है! अब तो ऐसा लग रहा है कि चाहे चुनावों में कोई भी जीते, बाद में जो ‘इन्हें’ खरीदने के हैसियत रखता है, वही सरकार बनाएगा! क्या इस अनैतिकता पर पूरी तरह से रोक नहीं लगनी चाहिए? क्या इस तरह की राजनीति को जायज़ कहा जाएगा? ऐसे तो एक दिन किसी भी राज्य और केन्द्र की सरकार, किसी बड़े व्यापारी के हाथों में होगी और जब ऐसा होगा तो क्या इसे स्वस्थ लोकतंत्र कहा जाएगा? क्या सरकारी ख़जाना गलत हाथों में नहीं होगा? क्या आम जनता के अधिकार सुरक्षित रह सकेंगे? क्या जनहित के लिए बनने वाली नीतियों पर घातक असर नहीं आएगा? और फिर लोक कल्याण का क्या होगा?

गौरतलब है कि जारी सियासी उठापटक के बीच झारखंड में जेएमएम-कांग्रेस के विधायक छत्तीसगढ़ पहुंच गए। हेमंत सोरेन ने सरकार पर मंडरा रहे संकट को ध्यान में रखते हुए, इन विधायकों की रवानगी करवाई। बताया जा रहा है कि इस आपरेशन की कमान खुद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन संभाले हुए हैं। सोरेन ने कहा कि सत्ता पक्ष हर परिस्थिति का सामना करने के लिए तैयार है। रांची से रायपुर पहुंचे, विधायकों से मिलने के लिए छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी मिलने पहुंचे। इंडिगो की 6 9522 नंबर की फ्लाइट रांची एयरपोर्ट से यूपीए के 45 विधायकों को लेकर रायपुर पहुंच गई है। इन सभी विधायकों को छत्तीसगढ़ के मेफेयर गोल्फ रिसाॅर्ट में रखा जाएगा। यह वही रिसाॅर्ट है, जिसमें कुछ दिन पहले हुए राज्यसभा चुनाव के लिए हरियाणा के विधायकों को रखा गया था। आॅपरेशन कमल को ध्यान में रखते हुए यह कदम उठाया गया है, क्योंकि अभी कुछ दिन पहले ही कांग्रेस के तीन विधायक पैसों के साथ गिरफ्तार हुए थे, तभी कयास लगाए जाने लगे थे कि मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र के बाद आपरेशन कमल का अगला टार्गेट, झारखंड होने वाला है। जिसे हेमंत सोरेन तुरंत भांप गए और उन्होंने समय रहते इस बाजी को पलटकर अपने खेमे में कर ली।

गौरतलब रहे कि आफिस आफ प्राॅफिट केस में फंसे हेमंत सोरेन की विधायकी पर संशय बरकरार है। बताया जा रहा है कि चुनाव आयोग के बाद राज्यपाल रमेश बैस ने भी सोरेन की विधायकी रद्द करने के प्रस्ताव पर मोहर लगा दी है और इसका लेटर चुनाव आयोग और राज्य चुनाव आयोग को भेज दिया है। जिसे कई दिन से गर्वनर साहब दबाए बैठे हैं! आखि़र क्यों? किसके इशारे पर? क्या पद की कोई गरिमा नहीं होती है? समय जब जरूरत से ज्यादा लगेगा तो सवाल भी खड़े होंगे। आंकड़ों की बात करें तो 81 सदस्यों वाली झारखंड विधानसभा में इस वक्त झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) के पास 30, कांग्रेस के पास 18, आरजेडी के पास 1 विधायक हैं, यानि कि बहुमत के लिए जरूरी 41 में से आठ अधिक कुल 49 की संख्याबल है। वहीं, विपक्ष में बीजेपी के पास 26, आजसू के पास 2, एनसीपी 1, सीपीआईएमल 1, निर्दलीय 2 विधायक हैं। अगर बीजेपी हेमंत सोरेन सरकार को गिराना चाहती है तो उसे 13 की संख्या और चाहिए। क्योंकि वोटिंग की नौबत आने पर सीपीआई-एमएल जेएमएम को ही सपोर्ट करेगी, इसके अलावा निर्दलीय भी फिलहाल हेमंत के साथ ही हैं, एनसीपी भी हेमंत को ही सपोर्ट कर रही है। जेवीएम को चुनाव में तीन सीटें हासिल हुई थी, उसके बाद बाबूलाल मरांडी ने पार्टी के मुखिया होने के नाते पार्टी को बीजेपी में विलय करा दिया और खुद भी बीजेपी में शामिल हो गए। लेकिन उनके दो विधायक प्रदीप यादव और बंधू तिर्की कांग्रेस में चले गए। केंद्रीय चुनाव आयोग ने जेवीएम के विलय को मान्यता दे दी है, लेकिन झारखंड विधानसभा अध्यक्ष ने इसे अब तक मान्यता नहीं दी है। तर्क ये दिया जा रहा है कि दो तिहाई विधायक तो कांग्रेस में चले गए, ऐसे में बीजेपी में विलय मान्य नहीं है, यही मामला विधानसभा अध्यक्ष के कोर्ट में फिलहाल चल रहा है, जिसमें आशंका है कि बहुत जल्द बाबूलाल मरांडी की भी विधायकी जाएगी, आजसू बीजेपी के साथ है।

इसी बीच सूत्र बता रहे हैं कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने राज्यपाल रमेश बैस से मुलाकात के लिए वक्त मांगा है। जिसके बाद अनुमान लगाया जा रहा है कि हेमंत सोरेन से पद से इस्तीफा दे सकते हैं। हाल ही में एक ट्वीट में हेमंत सोरेन ने लिखा है कि यह आदिवासी का बेटा है, इनकी चाल से हमारा न कभी रास्ता रुका है, न हम लोग कभी इन लोगों से डरे हैं। हमारे पूर्वजों ने बहुत पहले ही हमारे मन से डर-भय को निकाल दिया है, हम आदिवासियों के डीएनए में डर और भय के लिए कोई जगह ही नहीं है। जोकि बताता है कि वह आगे के संघर्ष के लिए पूरा मन बना चुके हैं। अब इनका सियासी ऊंट किस ओर करवट लेगा, यह तो भविष्य के गर्त में है। लेकिन राजनीति में विधायकों को खरीदने और बिकने की ख़बरे आने से राजनेताओं की छवि तो दागदार होती ही है और चुनाव के समय, जनता के बीच जाने के लिए छवि बहुत मायने रखती है। हां, अगर धनबल और बाहुबल की बदौलत ही चुनाव जीतना और सरकार बनानी हो तो बात कुछ अलग है… झारखंड में कायम राजनीतिक अनिश्चितता के बीच सत्ताधारी गठबंधन के विधायकों का कुनबा छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में है और वहीं से हेमंत सरकार की बहुमत की सरकार को खरीद-फरोख्त से बचाए रखने का दावा कर रहा है।

रायपुर आने की जरुरत क्यों पड़ी? के सवाल पर मीडिया से बात करते हुए हुए कांग्रेस विधायक दीपिका पांडे ने कहा, अगर आपके घर में चोरी का डर होगा तो आप अपने दरवाजे-ताले को मजबूत करेंगे या नहीं? जेएमएम के विधायक सुदिव्य कुमार सोनू ने मीडिया से ही सवाल करते हुए पूछा कि क्या आप यही सवाल कथित तौर पर विधायकों को खरीदने की कोशिश करने वालों से आंख मिलाकर पूछ सकते हैं? क्या आपने महाराष्ट्र में यह सवाल किया था? आखि़र कहां जाकर रूकेगी, यह सियासी भागम-भाग?

लेखक, राजेश कुमार (वरिष्ठ पत्रकार)

Related posts

Leave a Comment